Last modified on 1 जून 2020, at 18:12

मैंने तो सोचा था- / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 1 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


हुई भोर सुन
ओ मेरे मन के पाखी
कट ही गई
देखो ये अँधियारी रात
और भी कट जाएँगी ।
हम धो डालें
आओ उदासी
शीतल जल से
रख दूँ सिर पर हाथ
व्यथाएँ भी घट जाएँगी
मैंने तो सोचा था -मिटकर
घावों का मरहम बन जाऊँ,
पर कुछ भी तो हो न सका ।
छूकर तेरा तपता माथा
मैं दो पल को भी ,
तेरे हृदय का ताप
चाहकर धो न सका ।