भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँसुरी बजाइराख / ज्ञानुवाकर पौडेल
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 5 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानुवाकर पौडेल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
निरोले झैँ बाँसुरी बजाइराख
हो, देशलाई यसरीनै जलाइराख ।
को आफनो यहाँ अब को पराई ?
जो शक्तिमा छ उसलाइ रिझाइ राख ।
क्रान्तिको नाममा फैलाएर भ्रान्ति
जति सक्दो जन्तालाई कजाइराख ।
पाएनौ कतै रोजगारी त के भो
जो शक्तिमा छ उसलाई रीझाइराख ।
जान त गयौ तिमी टाढा धेरै टाढा
याद चैँ कैले काहीँ दिलाइराख।