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डिमेन्शिया / संगीता कुजारा टाक
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न जाने किन खलाओं में गुम हूँ
हूँ अंधेरों में और रोशनी भी है साथ
अभी था मुज्महिल मैं,
अभी नहीं कोई एहसास
ढूँढ रहा हूँ न जाने किसको
और न जाने कौन है मेरे पास
दिखाई दे रहा है अहरमन मुझको
और सबूते-हक भी है मेरे पास
अपनी गुमशुदी की शिकायत कहाँ करूँ
इन्हीं उलझनों में खोया रहता हूँ दिन रात