भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुस्ताखी / संगीता कुजारा टाक
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 5 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता कुजारा टाक |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पेड़ पौधों से
हमारी अनबन हो गई है
विकास की
यह कैसी
हवा बह गई है
नदियों को
छोड़ दिया है
हमने बेपरवाह...
प्लास्टिक, कूड़े-कचरे
और रसायनिक मलबों के लिए
भगीरथ के वंशजों से जाने
कैसी गुस्ताखी हो गई?