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फिर सुनाऊँगा कभी / कुमार विमलेन्दु सिंह
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उस पहाड़ के पीछे
इस नदी के उस पार
रात्रि की पूरी कालिमा
सुन्दर अरुणाभा
सब के बारे में
पूछ कर जाते हैं
यह विहंग मुझसे
अब मेरे पंख के रंग
जो पहाड़, नदी, रात और भोर से
उपहार में मिले थे
सदन सज्जा के लिए हैं
उड़ान की बातें
फिर सुनाऊँगा कभी