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शिव! आप ही हैं / कुमार विमलेन्दु सिंह

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वृक्षों के झुरमुट में
अटकी संध्या
नभ पर प्रकट होने का
आदेश माँगता मयंक
श्रम से शिथिल
नीड को लौटते हुए खग
किसी उत्सव के घोषणा कि प्रतीक्षा
किसी आगंतुक की आशा
विश्राम की आकाँक्षा
भयमुक्त, हर्ष मिश्रित और
प्रत्याशित सुखद आश्चर्य के
इन क्षणों के बाद
पुन, प्रकृति! तुम ही हो
शिव! आप ही हैं