भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब लेनिन गए / बैर्तोल्त ब्रेष्त / महेन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:49, 10 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त |अनुवादक=महेन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेनिन का जाना
ऐसा था जैसे
पेड़ ने पत्तों से कहा —
मैं जाता हूँ ।


मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : महेन