भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँसू का दरिया उमड़ा (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
1
दुनिया घिरी हुई संकट में, छाया तन-मन पर अँधियारा ।
आँसू का दरिया उमड़ा है, लगता छूटा आज किनारा ।
मैं प्रभु तुझसे इतना माँगूँ, तू जग को केवल सुख देना ।
सारे दुख मुझको देकरके इस जग को देना उजियारा ।
2
बहुत थका हूँ चलते-चलते, तेरी गोदी में सो जाऊँ।
नहीं किसी का हो पाया था, मैं केवल तेरा हो जाऊँ।
फ़सल ज़हर की रहा काटता, रक्तबीज फिर -फिर उग आए,
इस दुनिया से जब चलना हो, में पुष्प बीज कुछ बो जाऊँ ।
3
ज़िन्दगी में जिसने भी की ज़फ़ा, याद आया ।
एक नहीं मुझे वह हज़ार दफ़ा याद आया।
तुमने जो हाथ थामा पक्का दिया भरोसा ।
रह-रहकरके मुझे हर बेवफ़ा याद आया ।