भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हैं मरुधर री जायी हूं / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:11, 12 जून 2020 का अवतरण
{{KKRachna |रचनाकार=इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह=मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
बगत री लूवां रा
थपेड़ा खावती
म्हारी मायड़ भासा
थूं हिम्मत मत हारजै
बताय दै आं मौकापरस्त लुटेरां नैं
अर कैय आंनै कै
लगावो थांरो जोर
बतावो थांरी औकात
म्हैं मरुधर री जायी हूं
काचरिया री कुचमाद सूं
कदैई नीं डरूं
म्हारै खांडां री धार
अजै तांई कुंध नीं पड़ी
माथो देवां तो लेवणो भी जाणां
पीठ दिखावणो म्हैं नीं जाणां
साच नैं आंच नीं हुया करै
जे देखणो चावो
तो देखो इतियास नैं
देवो जवाब जे थांरै कनै हुवै
कांई हुयो? गिणतीं नीं हुवै!
म्हे चुप हां, इणरो मतलब समझो
थे ई जाणो हो कै
हर सरणाटै रै बाद
तूफान आवै
अर जद बो आवै
तो कांई छोडै है लारै!