भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात और चीख़ / नोमान शौक़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:08, 15 सितम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक जंगली सूअर के डर से
अपने-अपने घर में
दुबके रहने वाले सूरमाओं की तरफ़
क्यों देखते हो

इनके घर में
ऐश-कोशी की हज़ारों जन्नतें आबाद हैं
इन्होंने इस ज़मीं की
सबसे अच्छी पाठशाला से
मुनासिब क़ीमतों पर ले रखी है
हर उपाधि संस्कृति की
न्याय की और अम्न की

तुम्हारी चीख़ में
बिफरी हुई चिंगारियों का नृत्य
इनकी ख्वाबगाहों में
अंधेरा ही अंधेरा भर गया तो ...