Last modified on 15 जून 2020, at 13:29

सपनों की अंगड़ाई / जलज कुमार अनुपम

Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 15 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अदहन जैसे खौलते हुए
जुनून की तपिश लिए
कई बार चाहा
मेरे अधरो से तेरा नाम नहीं निकले
हर बार दिल
ओस की फुहारें खोज लाता है
और दिमाग
पत्थर पर दूब जमा बैठता है
यही से फिर शुरु होती है
उफनते सपनों की अंगड़ाई
और तब मैं हार जाता हूँ ।