कांई हुयो दिल्ली!
थूं कांई बावळी हुयगी?
आखै दिन  - आखी रात 
हांफती रैवै 
अर भागती रैवै 
थम!
कदैई तो थम 
जी कदैई थूं 
आपरै खातर ई 
देख, दुस्मणां रै 
पगां रा खोज थारी छाती माथै 
मंड्योड़ा है 
कितरा घाव होयग्या थारै डील माथै 
पण थूं है कै अेक पल नीं रुकै 
कांई ठाह किणरै खातर भागती रैवै 
आपरै दुख नैं भूल’र 
थूं बावळी दिल्ली!