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सांसां री सौरम / इरशाद अज़ीज़
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थे म्हारी निजरां मांय
घणा मीठा अर अणमोल हो
जिनगाणी मांगो
मना नीं करूं
थे सांसां री सौरम
साच कैवूं...
थांरो हुवणौ ईज
म्हारो हुवणो है
कदै-कदैई तो सोचूं
जे थे नहीं होंवता
तो म्हारै हुवण रो कांई मोल हो!