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थारो हुवणो / इरशाद अज़ीज़

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थम,
अर देख!
माथो उठा‘र
थारो हुवणो

म्हारै हुवणै नैं
हर बगत सोधै है थूं
अर
आपो-आपरै हुवणै सूं अळघो
कांई ठा किणरै हुवणै मांय
जोवै है आपो-आपनैं।