भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थारो हुवणो / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:21, 16 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
थम,
अर देख!
माथो उठा‘र
थारो हुवणो
म्हारै हुवणै नैं
हर बगत सोधै है थूं
अर
आपो-आपरै हुवणै सूं अळघो
कांई ठा किणरै हुवणै मांय
जोवै है आपो-आपनैं।