साँझ का गीत / पद्माकर शर्मा 'मैथिल'

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खेतों खलिहानों पर
आँगन दालानो पर
उतरी है अंगूरी शाम॥
पीला दिन हो गया ललाम।

उषा-जोगिनियाँ का भंग हुआ जोग
चाँदी-सी दुपहर को मार गया रोग
ऑफ़िस में फ़ाइल की, जड़ता को घोल
लौट रहे मुरझाए, थके-थके लोग
पर्बत-दालानो में ऑफ़िस-दुकानो में
हलचल को लग रहा विराम।
पीला दिन हो गया ललाम॥


गलबहियाँ डाल रहे रौशनी-अंधेरे
बनपाखी खोज रहे रैन के बसेरे
ज्योतिकलश लूटते, शिखर बन लुटेरे
गौधूलि लील रही साँझ के उजेरे
सड़कों वीरानों को बांस के मचानो को
चंद्र-विहग कर रहा प्रणाम।
पीला दिन हो गया ललाम॥

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