भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
212.192.224.251 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:43, 16 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह }} सुबह-सुबह किसने आकर मुझ से य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह-सुबह

किसने आकर मुझ से यह कहा

जीवन हूँ मैं

मेरे साथ आ!


धरती-जल-वृक्ष-लता-पुष्प

सभी धुले-धुले!

आँखों में रह-रह कर

अनगिन आकाश खुले!

हाथ के इशारे से

बुला रही है कब से

रंग भरी धूप

और

इठलाती हुई हवा!

जीवन हूँ मैं, मेरे साथ आ!