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देख हाल मजदूर का, है सौरभ अफ़सोस / सत्यवान सौरभ

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बदले सबके रूप है, बदले सबके रंग
मगर रहे मजदूर के, सदा एक से ढंग

देख हाल मजदूर का, है सौरभ अफ़सोस
चलता आये रोज पर, दूरी उतने कोस

जब-जब बदले कायदे, बदली है सरकार
मजदूरों की पीर में, खूब हुई भरमार

बाँध-बाँध कर थक गए, आशाओं की डोर
आये दिन ही दुख बढे, मिला न कोई छोर

चूल्हा ठंडा है पड़ा, लगी भूख की आग
सुना रही सरकार है, मजदूरों के राग

रूप विधाता दोस्तों, होता है मजदूर
जग को सदा सुधारता, चाहे हो मजबूर

मजदूरों के हाथ हैं, सपनों की तस्वीर
इनसे सौरभ जुड़ी, हम सबकी तकदीर