भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरगद / प्रत्यूष चन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:36, 24 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रत्यूष चन्द्र मिश्र |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमारे गाँव में बहुत कम बचे हैं बरगद
जो बचे हैं
उन्हें कीड़ों ने चाट लिया
कुछ को धूप ने, हवा ने, पानी ने
इन सबके बीच वक़्त
सबसे बड़ा दीमक साबित हुआ
जो कुतरता रहा हर नए बरगद के विश्वास को
और इस तरह
उन्हें बरगद बनने से
रोकता रहा