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झूठ की तर्जुमानी नहीं चाहिए / शोभना 'श्याम'
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झूठ की तर्जुमानी नहीं चाहिए
आपकी महरबानी नहीं चाहिए
कुछ नयी निस्बतें चाहती ज़िन्दगी
याद वह अब पुरानी नहीं चाहिए
खिड़कियाँ खोल दो ज़हनों दिल की सभी
वहशतों की कहानी नहीं चाहिए
जो बहा दे सभी बस्तियाँ प्यार की
खून में वह रवानी नहीं चाहिए
दिल से महसूस हो है, तो बेहतर यही
दोस्ती आज़मानी नहीं चाहिए
बात ये जान ले हर किसी को यहाँ
पीर अपनी सुनानी नहीं चाहिए
खुद नुमायाँ सभी पर ये हो जायेगी
खुद से नेकी गिनानी नहीं चाहिए
इस जहाँ में वफ़ा सबको मिलती नहीं
जो मिले तो गवांनी नहीं चाहिए
तेरे रुख़सार पर हो ख़ुशी ही ख़ुशी
गम की कोई निशानी नहीं चाहिए
छीन ले ख़्वाब आँखों से आके सभी
सुबह ऐसी सुहानी नहीं चाहिए