भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक बार जो आया तो / शोभना 'श्याम'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 26 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शोभना 'श्याम' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर कभी नहीं गया पतझड़ यहाँ से
दिन ब दिन झड़ते ही गए पत्ते

हर दिन हर पल
मैने याद किया तुम्हें
हर पत्ते के झड़ने पर मैंने
फिर से गिने बचे हुए पत्ते
फिर से जड़ों में उंडेल दी
थोड़ी-सी उम्मीद
चल रहा है ये क्रम
आज तक अनवरत

गिरे हुए पत्ते चरमराते रहे
इंतज़ार के पाँव तले

हर पत्ते ने
शाख से झड़ने से पहले
पुकारा तुम्हें
पीली पड़ी आँखों से
सूखे हुए मुँह से
कि शायद सहेज लो तुम उसे

कैसे हो गए तुम इतने निष्ठुर
आखिरी पत्ती भी झड़ने को है
तुम कहाँ हो ...
ओ बसंत! तुम कहाँ हो