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बावरी / शोभना 'श्याम'

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आज फिर मुंडेर पर बोला है कागा
आज फिर बायीं आँख फड़की है
आज फिर गाय रम्भा गयी
दरवाजे पर सवेरे सवेरे
फिर कोई नीर भरी गागर छलकी है।
आज फिर प्रतीक्षा के दीप में
उम्र की सुलगती बाती को
उचका कर थोड़ा सा
आस का तेल भरकर विरहिन बैठी है।
आज फिर सारे शकुन गा रहे है मंगलाचार
आज तो आओगे ना निर्मोही
कि आंखों में प्रीत का काजल आँज कर
एक बावरी बैठी है।