Last modified on 27 जून 2020, at 15:07

रागनी 1 / सुमित सिंह धनखड़

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 27 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित सिंह धनखड़ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सारी प्रजा कठ्ठी होकै, दरबारां में आगी
शीश झुका कै राजा आगै, दुखड़ा रोवण लागी...

1.
यो बालकपण में तेज घणा सै, नहीं किसे तै डरता है
जो आवै सै इसके मन में, झट मनमानी करता है
पाणी लाएँ बिना कुएँ तै, कति ना हमनै सरता है
एक दिन जांगे प्राण किसी के, न्यू तै हमनै जरता है
नहीं मानता भय किसे का, इसा बण्या सै यो बागी...
शीश झुका कै॥

2.
सुबह ऊठ कै नहा धो कै इसनै, खाणा-खाणा चाहिए
फिरै हांडता गालां के म्हैं, पढणे जाणा चाहिए
श्याणा बालक हो रहा सै यो, इसको समझाणा चाहिए
नेक चलण और कायदे सर, इसकै लख्खण लाणा चाहिए
ठिक टेम पै उथल दयो इसनै, ना तै होज्यागा यो दागी

 शीश झुका कै॥

3.
कासण बासण छोड्डे कोन्या, सब तीरां तै फोड़ गरे
जै को उल्टा बोल पड़ै तै, उनके हाथ मरोड़ गरे
दुख व्यपता में पागल होकै, हमनै अपणे गात सकिकोड़ गरे
इतणी कहकै सब जनता नै, दोनू हाथ जोड़ गरे
क्यूकर दिखावैं ना दिखै, कति चिंता भीतर तै खागी।

 शीश झुका कै॥

4.
सुमित सिंह का तीर चालज्या, धड़ गिरज्यागी
मैटा रासा होज्यागा, जै कोए पणिहारी मरज्यागी
पाणी ल्यावैं पीवण खातर, के पाणी बिन सरज्यागी
के थारै शील़क जब होगी, जब शीश तै नाड़ उतरज्यागी
हाथ जोड़कै राजा आगै, जनता सारी खोल बतागी

शीश झुका कै॥

राजा प्रजा कि बात सुनकर दुखी हुआ और दरवाजे पर फरमान लगा दिया कि सुल्तान कवर को 12 वर्ष का दसौटा दिया जाता है जब सुल्तान आके पढता है तो क्या कहाणी बनती है...