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आहट का हिसाब;मुक्तक / कविता भट्ट

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ज़माने ने मेरी हर मुस्कराहट का हिसाब माँगा।

कि लड़खड़ाई रोशनी यों आहट का हिसाब माँगा। आँधी ज़िद पर थी कल तलक मेरा छप्पर उड़ाने की। कि जीने के लिए मैंने बनावट का हिसाब माँगा। 2 ढलता सूरज हथेली से थाम लिया उसने, निगाहों से इशारा सरे आम किया उसने। मेरी बातों में उसकी खुशबू हुई शामिल, मेरी वफ़ा को हसीन अंजाम दिया उसने।