भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द के बिस्तर / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:41, 30 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= | }} {{KKCatKavita}} <poem> ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


 हुआ अठन्नी दिल का भाव रे,
           हम उनके अब न दुलारे हैं।
वो गैरों की धुन में हैं बावरे,
           हमें दर्द के बिस्तर प्यारे हैं।
हम झोपड़ी के शहंशाह रे,
           उनके तो महल-चौबारे हैं।
लाचार प्रेमिका मेरे गाँव रे,
            वो प्रेमी से मॉल दुवारे हैं।
'कविता' अच्छी थी तन्हा रे,
            साथी प्रेम में दिन बंजारे हैं।