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मन करता है साथ तुम्हारे / कमलेश द्विवेदी

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मन करता है साथ तुम्हारे बैठें बात करें।
पर न समझ में आये कैसे हम शुरुआत करें।

कभी सोचते-अपनी बातें
क्या तुमको भायेंगी।
कभी सोचते क्या ये तुमको
पीड़ा पहुँचायेंगी।
दुविधा कि ये स्थितियाँ मन पर आघात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें बात करें।

एक राह पर चले ज़िन्दगी
तो यह भार न होगी।
दो नावों पर पाँव धरेंगे
नदिया पार न होगी।
जब दिमाग़ इतना सोचे तो क्या जज़्बात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें बात करें।

कब कहते हम इतने अच्छे
हमें देवता मानो।
मगर आदमी कैसे हैं हम
इतना तो पहचानो।
पहचानो तो साथ तुम्हारा हम दिन-रात करें।
मन करता है साथ तुम्हारे बैठें बात करें।