भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल छाये हैं / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 1 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नीले नभ पर काले-काले बादल छाये हैं।
मेघदूत किसका सन्देशा लेकर आये हैं।
लगता मुझको याद करे वो
मन से मुझे पुकारे।
वो खिड़की पर बैठी-बैठी
अपने बाल सँवारे।
ये उसके ही गेसू हैं जो घिरी घटायें हैं।
नीले नभ पर काले-काले बादल छाये हैं।
या वह सारी रात बैठकर
कहीं अकेले रोई.
और आँसुओं से ही उसने
अपनी देह भिगोई.
जल के साथ बहा है काजल घन कजरायें हैं।
नीले नभ पर काले-काले बादल छाये हैं।
नभ के बादल से यादों का
बादल बहुत घना है।
मन में ऐसे उमड़ा-घुमड़ा
मेरा गीत बना है।
एक गीत ने कितने-कितने भाव जगाये हैं।
नीले नभ पर काले-काले बादल छाये हैं।