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महकाने का वादा करके / कमलेश द्विवेदी

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महकाने का वादा करके कैसे भूल गये।
फूल भुला बैठे गुलशन को इतना फूल गये।

हमने तो सोचा था कल तक
तुम खिल जाओगे।
इस गुलशन को सबसे ज़्यादा
तुम महकाओगे।
पर कैसे अपने स्वभाव के हो प्रतिकूल गये।
फूल भुला बैठे गुलशन को इतना फूल गये।

हमें लगे तुम अपने जैसे
अपना मान लिया।
और तुम्हें ही हमने अपना
सपना मान लिया।
चूर कर दिया सपना तुमने, देकर शूल गये।
फूल भुला बैठे गुलशन को इतना फूल गये।

दम्भ न करना खिलने का तुम
कितने खिलते हैं।
पर कितनों को प्रभु-पूजा के
अवसर मिलते हैं।
कितने खिले, धूल में गिरकर हो ख़ुद धूल गये।
फूल भुला बैठे गुलशन को इतना फूल गये।