भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो नाराज़ हो गया / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:27, 1 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पहले सच्चा था फिर झूठा अब मैं धोखेबाज़ हो गया।
मैंने पूछा-ऐसा कैसे, इस पर वह नाराज़ हो गया।
जब तक हाँ में हाँ करता था
तब तक मैं बिलकुल सच्चा था।
लेकिन इस आदत के कारण
उसकी नज़रों में बच्चा था।
मैं चिड़िया ही बना रहा वह धीरे-धीरे बाज हो गया।
मैंने पूछा-ऐसा कैसे, इस पर वह नाराज़ हो गया।
उसके किसी झूठ पर मैंने
जब स्वर में स्वर नहीं मिलाया।
उसने मुझको झूठा बोला
और स्वयं को सही बताया।
तबसे मेरी सारी बातों पर उसको एतराज हो गया।
मैंने पूछा-ऐसा कैसे, इस पर वह नाराज़ हो गया।
अब मैं भाव हृदय का कोई
उसके आगे नहीं जताता।
इसीलिये वह बहुत ख़फ़ा है
मुझको धोखेबाज़ बताता।
कल कैसा रिश्ता था उससे कैसा रिश्ता आज हो गया।
मैंने पूछा-ऐसा कैसे, इस पर वह नाराज़ हो गया।