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ताकि रहल छी गाम अपन / किसलय कृष्ण

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मगन भेल हम महानगर मे, बेचि रहल छी घाम अपन।
गूगल केर नक़्शा पर तैयो, ताकि रहल छी गाम अपन।

गामक नाम आ नक़्शा भेटल,
मुदा निपत्ता सभटा बात...
सूखल पोखरि, उजड़ल बाड़ी,
कतय भेटत तिलकोरक पात...
साँझ सोहाओन बिला गेल,
डीजे बाजाक अनघोल मे...
सपनेहुँ की सुनि सकब पराती,
बाबा केर मीठगर बोल मे...

पेटिश आ पिज्जा-बर्गर मे, लगा रहल छी दाम अपन।
गूगल केर नक़्शा पर तैयो, ताकि रहल छी गाम अपन।

सजबै छी मंच सगर दुनिया मे,
हम मिथिला केर प्रवासी छी...
गामे जखन अछि शोणितायल,
त' सभटा गीत उदासी छी ...
आबो जागू हे मीत लोकनि,
बिनु गाम केहेन हम राज लेबै...
रीति-विधि बिसरि अपने,
नवपीढ़ी कें कौन समाज देबै...

मिथिलेक माटि-पानि सँ सींचल, देह-हाथ आ चाम अपन।
गूगल केर नक़्शा पर तैयो, ताकि रहल छी गाम अपन।