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मन मेरो त्यसै-त्यसै दुख्छ / रवि प्राञ्जल

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आजभोलि मन मेरो त्यसै-त्यसै दुख्छ
रोऊँ भने आँसु मेरो गह भित्रै सुक्छ

वसन्तमा मधुमास छैन आज भोलि
न्याउली रुन्छे बिरहमा मुटु मेरो पोली
ब्यथाहरू बल्झिएर खुशी पर लुक्छ
रोऊँ भने आँसु मेरो गह भित्रै सुक्छ

बगर भो छाती मेरो आँखा भो किनारा
कहाँ पोखूँ बह मनको भेटिन सहारा
भावनाको सागरमा मन मेरो डुब्छ
रोऊँ भने आँसु मेरो गहभित्रै सुक्छ