भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह कौन दस्तक दे गया / ओम निश्चल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:58, 16 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यह कौन दस्तक दे गया
इतनी सुबह इतनी सुबह ।
आँखों में सपने बो गया
इतनी सुबह इतनी सुबह ।
थी नींद आँखों में बसी
था रात का चौथा पहर
हर सिम्त ख़ामोशी यहाँ
सोया हुआ पूरा शहर
कोई सुखद-सी कल्पना
कर गई कवितामय सुबह ।
था गुनगुनाता-सा कोई
कुछ स्वप्न थे कुछ बिम्ब थे
सुधियों के फ़्रेमों में जड़े
भावों के कुछ प्रतिबिम्ब थे
इक लहर-सी आई तभी
धो गई मन की हर सतह ।
पूछा किसी ने क्या मेरी
भी याद आती है कभी ?
इस भुवन में मेरी कमी
तुमको है तड़पाती कभी ?
मेरे बिना होती तुम्हारी
रात की कैसी सुबह ?