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अगर मुहब्बत छुपी नज़र में / कैलाश झा 'किंकर'

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अगर मुहब्बत छुपी नज़र में।
पता चलेगा सभी को घर में॥

बहुत ज़रूरी है सावधानी
निकल रहें हैं अगर सफ़र में।

बिना किए कुछ किसी को हासिल
हुआ न करता महा समर में।

निराश बैठा रहे न कोई
समय की क़ीमत बढ़ी शहर में।

बहुत हुआ विष-वमन यहाँ पर
लटक गयी है सुधा अधर में।

सँभल-सँभल कर चलोगे "किंकर"
उगे हैं काँटे डगर-डगर में।