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शाम ढलते ही कामगारों में / कैलाश झा 'किंकर'

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शाम ढलते ही कामगारों में
बात होती है कुछ इशारों में।

घर के बच्चे किताब माँगेंगे
खोए होंगे जो चाँद-तारों में।

मुफ़लिसी में भी रास्ता मिलता
बात रखिए तो राज़दारों में।

जिनको है इन्कलाब से मतलब
रात दिन जी रहे शरारों में।

फूल को तोड़ बेच लेता वह
 उसकी चर्चा है अब बहारों में।

डायरी में कहीं पर लिख लीजै
नाम 'किंकर' का ग़म-गुसारों में।