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इतनी खामोशियाँ नहीं अच्छी / कैलाश झा 'किंकर'

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इतनी खामोशियाँ नहीं अच्छी
आपसी दूरियाँ नहीं अच्छी।

बात दिल की कही सुनी जाए
सख़्त पाबंदियाँ नहीं अच्छी।

बात करते तो हल निकल जाता
बेसब चुप्पियाँ नहीं अच्छी।

वस्त्र, भोजन, मकान की चिन्ता
ऐसी दुश्वारियाँ नहीं अच्छी।

सबको जीने का हक़ मिला है, पर
उठ रहीं ऊँगलियाँ नहीं अच्छी।

राह चलते किसी भी लड़की पर
कसना यूँ फब्तियाँ नहीं अच्छी।