भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज शोकधुन पूछ रही है / गीता पंडित

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 20 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीता पंडित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज शोकधुन पूछ रही है
कब तक ऐसे चलना है

दिन बाजीगर
बना हुआ है
गोली पीठ पर खाता है
फिर धीमे से दुश्मन का जा
भेजा वही
उड़ाता है
 
लेकिन संध्या
से पहले क्यों
उमर को ऐसे गलना है
कब तक ऐसे चलना है

आज कबूतर
उड़कर कहता
शांति हमारा नारा है
लेकिन नदी रक्त की बहकर
पूछ रही
क्या धारा है

समय सिसकता
बोल रहा क्यों
ऐसे मुझको ढलना है
कब तक ऐसे चलना है।