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मैं हूँ कोयल काली / कमलेश द्विवेदी
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मैं हूँ कोयल काली-मैं हूँ कोयल काली।
कौव्वे जैसी दिखती हूँ पर उससे बहुत निराली।
जब बसंत ऋतु आती है।
मन को बहुत लुभाती है।
फल-फूलों से लद जाती,
हर बगिया मुस्काती है।
कुहू-कुहू तब करती फिरती मैं हूँ डाली-डाली।
मैं हूँ कोयल काली-मैं हूँ कोयल काली।
पंचम स्वर में गाती हूँ।
प्यारी तान सुनाती हूँ।
अपनी मीठी बोली से,
सबका मन बहलाती हूँ।
इस बोली से सबके मन में मैंने जगह बना ली।
मैं हूँ कोयल काली-मैं हूँ कोयल काली।
तुम भी यह गुण अपनाओ.
वाणी से रस बरसाओ.
और इसी के द्वारा ही,
सबके प्यारे बन जाओ.
मीठी बोली होती है हर काम करानेवाली।
मैं हूँ कोयल काली-मैं हूँ कोयल काली।