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कितनी क्या देर है सवेरे में / जहीर कुरैशी
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कितनी क्या देर है सवेरे में
और कब तक रहें अँधेरे में ?
तुमसे मिलना भी हो गया अपराध
आ गये हम भी शक के घेरे में
घर में क्यों घुस नहीं रहे पंछी
साँप बैठा है क्या बसेरे में?
मूक तस्वीर बोलने भी लगे
इतनी ताकत नहीं चितेरे में
कौन से चार हाथ होते हैं
लुटने वाले में या लुटेरे में
संत आने लगे सियासत में
फँस गये वे भी तेरे— मेरे में
हर समय मछलियों की गंध मिली
हर मछेरिन में हर मछेरे में .