Last modified on 25 जुलाई 2020, at 19:57

जगत है चक्‍की एक विराट / हरिवंशराय बच्चन

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:57, 25 जुलाई 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जगत है चक्‍की एक विराट
पाट दो जिसके दीर्घाकार-
गगन जिसका ऊपर फैलाव
अवनि जिसका नीचे विस्‍तार;

नहीं इसमें पड़ने का खेद,
मुझे तो यह करता हैरान,
कि घिसता है यह यंत्र महान
कि पिसता है यह लघु इंसान!