भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सॉनेट / प्रभाकर माचवे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 2 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभाकर माचवे |अनुवादक= |संग्रह=त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने जितना नारी, तुमको याद किया है, प्यार दिया है,
तुमने भी क्या कभी भूल से सोचा था कैसा है यह मनु ?
मैंने क्या अपराध किया जो तुमने यों इसरार किया है
जाने कैसे विद्युत्कर्षण से परसित है तन-मन-अणु-अणु ।

तुम मेरे मानस की संगिनि, चपल विहंगिनि, नीड़ कि शाखा ?
तुम मेरे मन की राका की एकमात्र नक्षत्र-विशाखा;
तुम हो मृगा या कि आर्द्रा हो? नहीं, रोहिणी, तुम अनुराधा,
तुम छायापथ, ज्योति-शिखा तुम, तुम उल्का, आलोक-शलाका,

संशय के सघनांधकार में विद्युन्माला अयि अचुम्बिते !
तुम हरिणी, मालिनी, शिखरिणी, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्बिते
तुम छन्दों की आदि-प्रेरणा, प्रथम श्लोक की पृथुल वेदना,
तुम स्रग्धरा या कि मंदाक्रांता, ओ आर्या, गीति स्तंभिते !

मैं गतिहारा यति-सा ग्रह से शून्य प्रभाकर, मैं वैनायक
तुम रागिनी और मैं गायक, तुम हो प्रत्यंचा मैं सायक !