भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंदरिया डांस बार में / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 2 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बीच सड़क पर मुझे एक दिन,
बन्दर भाई मिले।
अपने घर से उन्हें बहुत थे,
गिले और शकवे।
बोले नहीं बंदरिया देती,
उन्हें समय पर खाना।
उसे सुहाता रोज़ रोज अब,
डांस बार में जाना।