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खेल ज्वाला से किया है! / सुमित्रा कुमारी सिन्हा

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खेल ज्वाला से किया है!


शून्यता जब नयन छाई, हृदय में तृष्णा समाई,

समझ कर पीयूष मैंने

गरल ही अब तक पिया है।


स्वप्न-उपवन में चहक कर, पींजरे में जा, बहक कर-

जग भला क्या जान सकता,

मूल्य मैंने क्या दिया है?


इस अंधेरे देश में पल, पागलों के वेश में चल,

शून्य के ही साथ मैंने

वेदना-विनिमय किया है !


प्यार का पाकर निमन्त्रण, मैं गई,कितना प्रवंचन!

समझ कर वरदान मैंने,

शाप ही अब तक लिया है!


खेल ज्वाला से किया है!