वह पल / मार्गरेट एलिनॉर एटवुड / प्रतिमा दवे
वह पल जब कई सालों की मेहनत मशक्कत और लम्बी यात्राओं
से लौटने के बाद
तुम अपने कमरे, घर, ज़मीन, टापू या देश के बींचोबीच खड़े होते हो तो
जानते हो कि अन्ततः तुम यहाँ तक कैसे पहुँचे और
फिर कहते हो कि यह सब मेरा है।
यही वह पल है जब पेड़ अपनी नर्म शाखें हौले से तुमसे अलग करते हैं
चिड़ियाएँ अपनी भाषा वापस ले लेती हैं
चट्टानें दरक कर टूट जाती हैं
और हवा तुमसे परे हो लहर की तरह लौट जाती है
फिर तुम सांस भी नहीं ले पाते।
ये सब आपस में फुसफुसाते हैं – नहीं, तुम्हारा यहाँ कुछ भी नहीं है
तुम तो एक यात्री भर थे जो बार बार पहाड़ पर चढ़
अपना झण्डा गाड़, दावे से कहते कि
हम तो तुम्हारे कभी थे ही नहीं और
न ही तुमने हमें खोजा
सच तो यह है कि हमेशा से इसका उलटा ही रहा है।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रतिमा दवे