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ओ मछुआरे / शिवजी श्रीवास्तव
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1
केशों में चाँदी
स्वर्ण मृग मन में
उम्र ठगिनी।
2
नभ पग में
रचा रही आलता
संध्या नाइन।
3
संध्या ने मला
भर मुट्ठी गुलाल
नभ के भाल।
4
लाडली उषा
चढ़ी व्योम काँधे पे
हँसी धरती।
5
ओ मछुआरे
ढला उम्र का सूर्य
जाल समेटो।
6
बाँचती उषा
प्रेम पत्र भोर का
मुस्काती धरा।
7
धो रही उषा
रात वाली ओढ़नी
झरे कोहरा।
8
जागा संसार
गंध बाँट सो गया
हरसिंगार।
9
बेटियाँ हँसी
छेड़ दी हवाओं ने
सरगम सी।
10
कागा की काँव
आयेंगे कान्ह आज
राधा के गाँव।
11
आम बौराया
फागुनी बयार ने
चूमा है उसे।
12
गंध संदली
दिशा-दिशा महकी
स्मृति वन में।