अर्जुन के तूणीर से
निकलते तीर से
जीवन के घोर समर में
लड़ते आधुनिक वीर से
बचपन में खेलते हैं कहाँ
बंधे रहते हैं हमेशा
पढ़ाई की जंजीर से
यौवन तो आता है ज़रूर
उसमें भी खिलते हैं कहाँ
ताजे ताजे फूल से
प्रतियोगिताओं के महासंग्राम में
चूकते हरगिज़ नहीं हैं
अपना हिस्सा छीनने से
खुद सगी तक़दीर से
आधुनिक लड़के
बंधते नहीं हैं मृगनयनियों के
काजल की कोमल डोर से
तब तक
जब तक बंध नहीं जाते
सुरक्षित भविष्य के छोर से
बंदिनी भावुकताएँ
सिर्फ समय पर ही
छोड़ते हैं हौले-हौले
मुट्ठियों की कोर से