Last modified on 8 अगस्त 2020, at 19:23

मन हठीला / भावना सक्सैना

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 8 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना सक्सैना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अकौआ के डोडे से
छितरे फायों-सी रही
स्त्री की ख्वाहिशें
जरा-सी हवा में
बस तितर-बितर...
लेकिन उसका मन
वो बीज हठीला
हर हवा के संग
तलाशता नई ज़मीं।
नहीं चाहिए उसे
भूमि जुती हुई
न खाद, न सिंचाई,
वो पथरीली दरारों में,
तपती रेतीली भूमि में
खोज लेता है नमी,
दृढ़ता कि जड़ों को
गहरे जमाकर भीतर
करता है पोषित अपना तन
और खिला लेता है
फूल संभावनाओं के...
कि ख़्वाहिशो के पंख
होते हैं नाज़ुक
पर मन रखता है
शक्ति अपरिमित।