Last modified on 10 अगस्त 2020, at 15:48

चिमकी और चुम्बक / दीपक जायसवाल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 10 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

और फिर
फिर क्या हुआ
धूप खिली हुई थी
गुलाबी दिन था
लग गया था चिमकी क़े हाथ
चुम्बक के दो टूटे हुए टुकड़े
फिर अचानक चिमकी को भान हुआ
उसे काला जादू आ गया है
वह अपनी दादी की कहानियों की
जादूगरनी बन गयी थी
उसे लगा कि वह यह जान गयी है
कि किस कोण और दूरी पर दोनों चुम्बक एक दूसरे को
भींच लेंगे जैसे उसकी माँ भींच लेती हैं उसको
किस कोण पर वे एक दूसरे का मुँह तक
नहीं देखना चाहेंगे चाचू और पापा कि तरह
उसे लगने लगा उसे चुम्बक से प्यार हो गया है
वह इक रोज़ उसे जादू की छड़ी बना देगी
ऐसी तरकीब ज़रूर खोज लेगी वह
वह कोण
जिससे उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की दूरी कम की जा सके
उसे लगने लगा कि चंदा मामा, तारों व ढेर सारे जुगनुओं और
मर चुकी नानी को चुम्बक से अपने सपनों से खींच लाएगी बाहर
वह फूलों की सुगंध, तितलियों के रंग, चिड़ियों के पंख, गिलहरी
के हाथों को, मछली की आँख को इक रोज़
अपने भीतर भर लेगी
दिन भर उड़ती रही चिमकी
सिकन्दर के घोड़े पर बैठकर
इस जुगत में कि आसमान को धरती पर कैसे लाया जाय
बादल को पकड़कर अपने छोटे से बस्ते में कैसे रख लिया जाय
उसका मन उस रोज़ सेमल की रुई हुई जा रही थी
दिल हरसिंगार के फूल हो चले थे
जादूगरनी चिमकी अपने चुम्बक से
दुनिया को फिर से रच रही थी।