Last modified on 11 अगस्त 2020, at 18:55

जंगल / सूर्यपाल सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यपाल सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पेड़ और जंगल
कटते रहे धरती पर
और उग आया
एक घना जंगल
आदमी के भीतर।
बाघ भी कहाँ जाता
वह भी भीतर के जंगल में
आ गया कुलाँचे भरते हुए
इसीलिए षायद
इसीलिए
आदमी दूसरों का रक्त पी
मोटा होना चाहता है।