Last modified on 11 अगस्त 2020, at 22:37

मुठ्ठियों का फर्क / सुरेश बरनवाल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:37, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश बरनवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बंद मुठ्ठियो का
रोटी से रिश्ता
इतना ही / कि
जब वे मेहनत से
जमीन पर लकीरें बनाती हैं
आसमां पर चमकने लगते हैं
रोटियों के चंद टुकड़े।

कुछ और मुठ्ठियाँ
जो बनाते हैं फासले
जमीं और आसमां के बीच
रोटियों को ज़मीं तक
आने नहीं देते।

पहले वाली मुठ्ठियाँ
रोटियों को पाने के लिए
खुले याचक हाथों में बदल
प्रतीक्षा करती रहती हैं
फिर कूकते पेटों को
सहलाने के लिए
कांपती उंगलियाँ बन जाती हैं।