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बिंदु दो / मुदित श्रीवास्तव
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दुःख का आना और जाना
किस बात पर निर्भर करता होगा?
कितने सारे उत्तरों का
एकमात्र प्रश्न दुःख है?
किसी भी भाव को भीतर
ग्रहण करने से पहले
दुःख का अर्पण भीतर से हो जाता है!
सुख, दुःख का विलोम हो या न हो
सामान्तर ज़रूर है।
प्रेम दो बिंदुओं की तरह
दुःख के बीच विद्यमान है!