भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक्कीसवीं सदी मा / अरविन्द 'प्रकृति प्रेमी'
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 13 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द 'प्रकृति प्रेमी' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इक्कीसवीं सदी मा
न मनखि बदलि
न मनखि कु मन,
मनखि आज बि
जन कु तन ।
शिक्षा बदलि पण
समाज नि बदलि,
न बुरु रिवाज बदलि
न भेद -भाव बदलि
न जात-पात बदलि
इक्कीसवीं सदी मा
क्य खाक बदलि?
कुछ मनख्यों,
आज बि मन्दिरों
का द्वार बन्दै छन,
न मनख़्यों का
बणाया भगबान बदलिन
न मनखि बदलिन
इक्कीसवीं सदी मा
क्य खाक बदलि?